बिकाऊ न्यूज़, गुंडागर्दी और हिंदु राजनीति


पारंपरिक संस्कृति के नाम पर धार्मिक अंधानुकरण से आम आदमी में उपजे निराशा, बेरोजगारी से युवाओं में बढ़ती हताशा और आर्थिक बदहाली के कारणों से पनपी गुंडागर्दी हमेशा एक बड़ी समस्या रही है जो कि आज एक बड़े पैमाने पर राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल की जा रही है ।

सारे संसार को एक परिवार बताने वाले हमारी संस्कृति तथा इसे आदर्श मानने वाली लगभग 90 प्रतिशत भारतीय मीडिया आजकल सम्पूर्ण रूप से राइट विंग हिंदू राजनीति की रोबोटिक प्रवक्ता बन चुकी है। आज के येलो जर्नलिज्म और बिकाऊ न्यूज़ मीडिया के दम पर बनी राजनीतिक परिकल्पना जिसे सुनने मात्र से सर भारी हो जाता है, कुछ समय के बाद पूर्णता मनोरंजन सामग्री रूप में इस्तेमाल किये जाएंगे।


इन सबों का मूल 'स्वामित्व का स्थान्तरण' की प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। जल-जंगल-जमीन और अन्य प्राकृतिक प्रदत सम्पदा पर औद्योगिक स्वामित्व की दौड़ ने राष्ट्रीय राजनीति का बजट इतना बढ़ा दिया है कि टेक्नोलॉजिकल विघटन के नाम पर टेलीकॉम कंपनियों को जरूरी कम्युनिकेशन सेवाओं को लगभग मुफ्त में प्रदान करने के लिए बाध्य किया गया है। एक लाख करोड़ रुपए से शुरू की गई जिओ कंपनी इस बात को प्रमाणित कर रही है।

इस प्रतिस्पर्धा के नकारात्मक प्रभाव में धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक मान्यतों के आड़ में छुपे गुंडागर्दी और आतंकवाद के रूप में उभरता राजनीतिक उन्माद है। उदहारण के तौर पर गुड़गांव में होली के दिन हुए हमले को लें, जो कि एक मुसलमान परिवार के तीन मंजिला घर पर दर्जन भर गुंडों ने किया। इस प्रकार के घटनाओं को न्यूज़ मीडिया के माध्यम से सबसे ज्यादा बेचा जा रहा है। जिसने आर्थिक रूप से समृद्ध परिवारों को भी अपने सुरक्षा के लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है।

सुदेश कुमार

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