तेज गति से उभरती डिजिटल लाइफ और स्मार्टफोन के दौर में अभी लोग दूसरों से कम पर खुद से ज्यादा परेशान हैं, इनमें कुछ को तो पता ही नहीं कि उन्हें सही में चाहिए क्या? वैसे अपने देश में बोलने वालों से सुनने वाले एवम अंतर्मुखी लोगों की तादाद हमेशा से बहुत ज्यादा रही है जो कि अब प्रचुर मात्रा में इंटरनेट मुहैय्या होने के कारण शॉपिंग औऱ वासनायुक्त सर्फिंग के बाद रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ब्लॉगिंग दुनिया में अपने जरूरत के अनुसार लगातार जुड़ते जा रहे हैं।
ट्रेंड्स के नाम पर कुछ नयापन अपनाने की होड़ में लोग सोशल मीडिया बब्बल को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार के कम्युनिटी में तब्दील करते जा रहें हैं। अब वो दिन दूर नहीं जहां तीस करोड़ व्हाट्सएप्प चलाने वाले भारतीय पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था को अपने जरूरत की आड़ में भूलते चले जाएं। इसकी अनुभूति अपने बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में क्राउड फंडिंग से जन्में स्टार्टअप के माध्यम से नज़र आ रही है।
इंटरनेट से फुल-टाइम जुड़ने के बाद जब स्टार्टअप की किक ट्रेंड्स और फंडिंग आपको अपनी उपयोगिता और जरूरत का अहसास दिलाये तो आप से अच्छा कंटेन्ट डेवलपर शायद दूसरा ना मिले। यहां हम सही मायने में सीख लेते हैं कि ज्योतिष विज्ञान एवम वार्णिक गोत्र निस्थित नाम का व्यवहारिक बोझ ढ़ोने वाले आशावादी इंसान से आर्थिक जगत में पहचान बनाने की प्रक्रिया को एक सफल जिंदगी की संज्ञा दी जाती है।
महंगे स्कूल और स्कॉलर बाजार के सहारे प्रत्येक मध्यम-वर्गीय परिवार आपबीती को अपने बच्चे के माध्यम से भुलाना चाहता है। पहले हर मां-बाप प्राइमरी स्कूल में बच्चे के कॅरियर का फोरकास्ट कर लेते थे, जहां आज इंटरनेट ने उस समय अंतराल को बहुत कम कर दिया है। अपने 10+2+3 की शिक्षा व्यवस्था सोशल मीडिया बब्बल और वायरल ब्लॉगिंग के सामने घुटने टेकते नज़र आ रही है। इसे समझते हुए बहुत सारे शिक्षाविद तकनीकी ट्रेनिंग, कोडिंग, स्क्रिप्टिंग को पाठ्यक्रम में जोड़ कर 15 साल के इस पारंपरिक शिक्षा को समयानुरूप उपयोग करने की वकालत कर रहे हैं।
सुदेश कुमार