कोविद लॉकडाउन: भारत की एक महान दुविधा!

पिछले एक साल से कोविद काल में खुद को प्रताड़ित करने के लिए एक बड़े पैमाने पर लोगों को सैकड़ों न्यूज़ चैनल्स के माध्यम से कभी थाली, तो कभी घंटी बजाकर ब्रेनवॉश किया गया है। आखिर कब तक आप ये बैठ कर इंतज़ार करते रहेंगे कि सभी चीज़ें पहले जैसी हो जाए? ऐसे समय में सरकार पर गुस्सा करना बिल्कुल ठीक है और इसके खिलाफ आवाज उठाना हम सबके लिए अब ज़रूरी हो चुका है।

भारत की शांति और समृद्धि जिस पर पहले ईश्वरवाद, सेक्युलरवाद, पाखंडवाद, जातिवाद की ग्रहण थी वो अब कोविद काल में सरकार के बवेकूफियों के कारण औंधे मुंह गिरी अर्थव्यस्था से और भी बुरे ढंग से प्रभावित हो रही है। ग्लोबल पीस इंडेक्स 2020 के अनुसार, 163 देशों की सूची में अपना भारत 139 वें स्थान पर है। लेकिन, इस से भी बुरी बात यह है कि भारत ने वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 में 149 देशों में से 139वें स्थान पर है। अर्थात इतनी प्रगति के बाद भी दुनिया में कुछ देशों को छोड़ कर सबसे ज्यादा शांति और समृद्धि की कमी अपने देश में ही है।

एक बड़ा सवाल यह है कि भारत कोविद के संक्रमण और मृत्यु दर में पूरे विश्व मे #1 स्थान पर पहुंच चुका है जिसके कारण पूरे देश में आपातकाल की स्थिति हो गयी है। लेकिन इसके बाद भी पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य राज्यों में लाखों लोग चुनावी रैलियों में जुट रहे है। कुंभ के धर्मिक मेले से IPL क्रिकेट तक का आयोजन जारी है।

किन्तु असल बात यह है कि सँक्रमण के बाद लोग Covid 19 के कम पर मानसिक बिमारियों के मरीज ज्यादा बन चुके है। जो अब पूरी तरह से कुछ स्वार्थी तत्वों पर कुछ मदद की आस लगाए बैठे हैं। पर धीरे-धीरे इनके कारण अपने देश में अशांति बढ़ती ही जा रही है। लॉकडाउन में बढ़ते मानसिक विकारों के कारण भारतीय लोगों में करुणा, मैत्री और शांति समाप्त हो रही है और वो पथभ्रष्ट हो कर अशांति, हिंसा, दुश्मनी, निर्दयता, बेरोजगारी और बीमारी की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। जो कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए जहर है।

पिछले कई हज़ार सालों में इतने बुरे ढंग से अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करना शायद ही कभी देखा गया हो। अगर ये चलता रहा तो समय भी करीब आ रहा है जब लोग विरोध करने के लिए नहीं बल्कि कार्रवाई करने के लिए सड़कों पर आएंगे। हमारे मजबूर मीडिया पर हमलोगों को बहुत दया आनी चाहिए जो बाकियों की तरह बस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। बलि के बूत बने सरकारी कर्मचारी, मेडिको और पुलिस के लोग, जो इस तथाकथित बीमारी के योद्धा हैं, पर जाने या अनजाने में ये देश की विशाल आबादी के प्रति भ्रष्टाचार और अन्याय को लागू करने का सामान बने हुए हैं।

कोविद काल आने से पूरा भारत देश एक पुलिस राज्य में परिवर्तित हो गया, जो पूरी तरह से एक विशाल देश की महानता को खत्म कर रहा है। पिछले एक साल से हर प्रांत अपनी स्थानीय राजनीति के अनुसार एक पुलिस राज्य के रूप में काम कर रहा है। अब संपूर्ण संघीय व्यवस्था खतरे में दिखाई देती है। बढ़ते पुलिस अत्याचार लोगों पर मानसिक बोझ डाल रहे हैं, जिसने सभी के मन में भय और अत्याचार के लिए जगह बनाई है। ज्यादातर राज्यों की सम्पूर्ण व्यवस्था अब तानाशाही हो चुकी है। अधिकांश पुलिसकर्मी इस संकटग्रस्त समय में निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों को बुरी ढंग से अपमानित और पिटाई करते नज़र आ रहे हैं, जहाँ हमारे मजबूर मीडिया के कैमरे बंद हो जाते हैं। आपदा प्रबंधन या महामारी नियंत्रण कानून किस तरह से आम जनता के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार पुलिस को देता है ये आम लोग नही समझ पा रहे हैं। आजकल नागरिकों की स्थिति को ब्रिटिश इंडिया की कर्फ्यू की तुलना में ज्यादा खराब माना जा रहा है जहाँ लोगों को दैनिक जीवन में आहार-विहार के लिए सरकारी फरमान की जरूरत नहीं होती थी।

सुदेश
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