क्या मानवतावादी होना धर्म विरोधी है?

जीवन के सर्वोत्तम मूल्यों को प्राप्त करने के लिए हमारा धर्म हमेशा से एक माध्यम रहा है। जो कि आदर्श जीवन की प्राप्ति के लिए निर्धारित किए गए मूल्यों (या आदशों) और तकनीकों की व्याख्या के माध्यम से पूरा किया जाता है। इनमें से किसी में भी बदलाव आने से पूरे धर्म की छवि पर असर पड़ता है।

मानवतावाद भी ऐन्थ्रपॉलजी की इस बात को स्वीकार करता है कि हमारा धर्म, संस्कृति और सभ्यता हमलोगों के सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था और प्राकृतिक वातावरण के साथ जुड़ने के कारण एक क्रमिक विकास का परिणाम है।  

आज वैज्ञानिक प्रगति से बनी हमारी जटिल सामाजिक-आर्थिक संरचना की व्यवस्था ने एक ऐसी स्थिति बनाई है जिसके लिए धर्म में व्यावहारिक परिवर्तन की आवश्यकता है। 100% आस्तिकता और "पौराणिक विचारों" पर आधारित पारंपरिक दृष्टिकोणों का समय अब बीत चुका है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो तकनीकी और आर्थिक परिवर्तन ने हमारी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से बाधित कर दिया है। यह स्पष्ट है कि कोई भी धर्म जो डिजिटलाइजेशन के युग में विलुप्त होना पसंद नहीं करेगा, उन्हें अपने अनुयायियों की जरूरतों के अनुसार फिर से व्यस्थापित होना होगा।

मानवीय सेवाओं में व्यक्तिगत भागीदारी के बाद ही जीवन में पूर्णता आती है, यहां ये फ़र्क नही पड़ता कि आप किस प्रकार के धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हैं। हम अपने जीवन में पूर्ण संभव विकास को हासिल करने के क्रम में खुशियों के अलावा शांति, समझदारी और आत्मिक सुंदरता को भी खोजते हैं। हम अपनी संस्कृति की समृद्ध विरासत पर भरोसा करते हैं और मानवतावाद की भावना हमें समृद्धि के साथ-साथ बदहाली में भी आराम प्रदान करती है।

हमलोग स्वभाव से सामाजिक हैं और रिश्तों में अर्थ ग्रहण करते हैं। मानवतावादी विचार हमें पारस्परिक देखभाल और क्रूरता-मुक्त जीवन शैली की दुनिया में ले जाते हैं। अंतर-निर्भरता के साथ किसी व्यक्तित्व के साथ का जुड़ाव, हमारे जीवन को समृद्ध करता है। यह हमें दूसरों के जीवन को भी समृद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करता है और सभी के लिए अवसर प्राप्त करने की आशा को प्रेरित करता है।

यह विचार करने योग्य होगा कि हम सभी को प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और व्यक्तिगत अधिकार को दूसरों के अधिकारों के अनुरूप रखने की आवश्यकता है। जिससे हम सभी संभव-अनुसार अधिकतम  स्वतंत्रता का आनंद ले सकें। हमें सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है, ताकि कोई भी व्यक्ति जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित न रहे। इसे प्राप्त करने के लिए हम पूरी तरह से हठधर्मिता, रहस्योद्घाटन, रहस्यवाद या अलौकिक तत्वों पर आधारित मान्यताओं को अस्वीकार करने के लिए बाध्य हैं। 

मानवतावादी होने के नाते, हमारा प्रयास होना चाहिए कि व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं का हल  केवल तर्क, बुद्धिमता, करुणायुक्त आलोचनात्मक भावना से निकाला जाए, जो सभी जीवित प्राणियों के लिए सहानुभूति रखता हो।

अंत में हमें याद रखना चाहिए कि हमारा जीवन और जिस तरह की दुनिया में हम जीना चाहते हैं, उसकी जिम्मेदारी हमारी और सिर्फ हमारी ही है। मानवीय मूल्यों की ईश्वरीय गारंटी देने का बिजनेस केवल राजनीति द्वारा निर्मित होता है। इस प्रकार हमारे जीवन के प्रवाह में बने रहने के लिए, हम ऐसी अभिलाषा रखते हैं कि - मानवता अपने आप में ही एक सही आधार प्राप्त करने की क्षमता रखती है। 

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