स्क्रिप्टेड पॉलिटिक्स की शुरुआत: ट्रिपल तलाक और पब्लिक डोनेशन से अय्याशी करने वाले बाबा राम-रहीम की ग्रिफ्तारी


आजकल आप को अजीब सा ज़रूर लग रहा होगा न्यूज़ देखकर, लेकिन ज़रा सोचिए, आगे-पीछे हुए इन दो मामलों को।

जिस पर सुप्रीमकोर्ट के लिए गए फैसले को इस तरह से पेश किया गया कि मानो दुनिया की सबसे बड़ी बुराई यही थी और इस तरह का माहौल बनाया गया या, यूं संदेश देने की कोशिश की गयी कि मानो सरकार ने अपने ही देश से कोई जंग जीत ली हो।

लेकिन वो मुसलमान जिन्हें कट्टर, गद्दार, आतंकवादी और जाने किन-किन अल्फाजों से अब तक नवाज़ा जाता रहा है और जिनकी तादाद अपने 134 करोड़ के देश में 20 करोड़ से भी ऊपर बताई जाती है, उनके आस्था से संबंधित मामले पर (गलत या सही ये अलग बहस का मुद्दा है) फैसला आना था? तब देश मे कहीं भी धारा #144 लगाने या और कोई भी क़दम उठाने की ज़रूरत ' पहले और बाद में' पड़ी। 20 करोड़ में से कहीं 20 लोग भी जमा नही हुए!

वहीं दूसरी ओर खुद को समाज सेवी, देशभक्त और देश को धर्म से ऊपर मानने वाले एक झूठा और पब्लिक डोनेशन से अय्याशी करने वाला बाबा, जिसके ऊपर हत्या और बलात्कार का आरोप है?



जिसे अभी सिर्फ अदालत में पेश होना होता है और उस पर अदालत के एक फैसले के कारण एक राज्य का पूरा सिस्टम – (रेल सेवा, इंटरनेट, स्कूल, कालेज, सभी कुछ) बंद करवा दिया जाता हैं ??

अभी गंभीरता से विचार और जांच होनी चाहिए के - 'ये कौन सी जेहादी विचारधारा या सम्प्रदाय के लोग थे - जिन्होंने सिर्फ दो से तीन घंटे में अपने 32 लोगों की क़ुरबानी दे डाली, देश को करोड़ों रुपये का नुकसान करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हर आम इंसान को उनकी औकात याद दिलवा दिया, मरीजों और गरीबों का ज़िक्र करना तो वैसे भी फ़िज़ूल है और उससे अफसोसनाक ये कि एक व्यक्ति को देश और संविधान से ऊपर दिखाने का हरसम्बह्व प्रयास किया??


सुदेश कुमार



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