चलो फिर अयोध्या चलते हैं, 25 साल के बाद फिर वही राजनीति दोहराते है और अन्ध-भक्ति की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
1992 में भी तो 1,50,000 लोग गए थे, तब क्या हुआ था ? भाजपा के नेता दिल्ली से आये थे जिन्होंने भाषण दिया और जनता को बताया की धर्म की पुकार है, जान की चिंता न करो और मस्जिद तोड़ दो। भाषण देकर वो वापस दिल्ली चले गए और दिल्ली-मुंबई सहित कई शहरों इसके फलस्वरूप हुए दंगों में हमारे 2000 लोग मारे गए।
जिन छुटभैया नेताओं को बड़े नेता कमान देकर दिल्ली निकल गए थे, उन्हें पुलिस ने पकड़ के जेल भेज दिया। जेल में किसी ने उनकी सुध नहीं ली, कोई भाजपा नेता जमानत कराने नहीं आया। जब वो जेल से बाहर आये तो पढ़ने-लिखने, नौकरी में आवेदन करने, या कोई कम्पटीशन के एग्जाम देने, शादी करने की उम्र निकल चुकी थी।
इस घटनाकर्म से जुड़े कितने युवा नेताओं का नाम याद है आपको ? एक भी नहीं ना? एक्जैक्टली !! यही बताने की कोशिश कर रहा हूँ की वो सब अब मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पाल रहे हैं। उदारहण के तौर पर बोले तो, इनमें से मथुरा के सुरेश बघेल भी 23 साल के एक उकसाये नौजवान थे। 1990 में मस्जिद उड़ाने के लिए डाइनामाइट ला के रखी थी, पुलिस ने पकड़ लिया और 5 साल की जेल हो गयी। RSS / भाजपा नेताओं के चहिते इस हीरो को जेल में कोई देखने तक नहीं आया। मंदिर के लिए जिंदगी बर्बाद करने वाले को कोई छोटे-मोटे मंदिर का पुजारी भी बनाने को तैयार नहीं हुआ। आज एक गौशाला में जिंदगी काट रहे हैं। यह एक सच है जिसे तोड़-मरोड़कर कर लगभग सभी न्यूज़ वालों ने छापा है।
बम्बई में तीन पीढ़ियों के पोस्टर वाले शिव सेना जो रिक्सा चलाने वाले, पानीपुरी का खोखा रखने वाले, सब्जी-भाजी बेचने वाले, मीलों और दुकानों में काम करने वाले गरीब तबके के लोगों को उत्तर-भारतीय बोलकर अपनी राजनीति और गुंडागर्दी करते हैं। नौकरी के लिए हम उत्तर-भारतीय और मराठी हैं लेकिन जब उन्हें मंदिर के सहारे वोट माँगने बारी आई तो आयोध्या तक पहुंच गए और हम सब हिन्दू हो गए।
सुदेश कुमार