बचपन की एक झलक को याद करना हमेशा सुखद अनुभव होता है। जब मैं अपने प्राथमिक विद्यालय की तीसरी कक्षा में था, तब मैंने गुरु नानक देवजी पेंटिंग प्रतियोगिता जीती थी। मुझे स्थानीय गुरुद्वारा (एक सिख मंदिर) द्वारा 1988 में पुरस्कृत किया गया था। यह छात्रों के लिए सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देवजी की यात्रा और योगदान के बारे में जानने के लिए एक प्रेरणा थी। उनकी शिक्षाएँ सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में निहित हैं, जिसमें उनके लिए 974 गुरबाणी शामिल हैं। आज भी मैं उनके सामाजिक न्याय और समाज के लिए निस्वार्थ योगदान को फॉलो करता हूँ।
यह भारतीय इतिहास का एक काला क्षण था जब 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिख समुदाय से जुड़े दो सिक्युरिटी कमांडो द्वारा हत्या कर दी गई थी। जैसा कि हम जानते हैं, सिख समुदाय अपनी विशिष्ट संस्कृति और सिख धर्म को बढ़ावा देने के धर्मार्थ कार्यों के लिए जाना जाता है। लेकिन 1984 के बाद, सिख समुदाय को पॉलिटिकल ग्रुप द्वारा बदनाम किया गया और उनके धार्मिक दृष्टिकोण, विशिष्ट पोशाक, विशेष रूप से पगड़ी और लंबे बालों के कारण उनसे भेदभाव किया जाता रहा है। लेकिन आजकल विदेशों में खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों के आंदोलन के बाद सिख समुदाय के लिए हालात बदतर होते जा रहे हैं। उन्हें खालिस्तानी माना जा रहा है।
खालिस्तान आंदोलन एक स्वतंत्र देश की मांग करता है जो एक विवादास्पद मुद्दा रहा है क्योंकि यह भारत की अखंडता को चुनौती देता है। 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन अपने चरम पर था, जिसके कारण भारत के पंजाब राज्य में कई हिंसक हमले हुए थे और हज़ारों लोग मारे गए। 1984 में, भारतीय सेना ने खालिस्तानी अलगाववादियों को हटाने के लिए 'ब्लू स्टार' नामक एक ऑपरेशन के ज़रिए गोल्डन टेंपल पर रेड किया। इस ऑपरेशन के परिणामस्वरूप कई लोगों की मौत हुई और गोल्डन टेंपल को काफ़ी नुकसान हुआ। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिक्युरिटी कमांडो ने हत्या कर दी, जो सिख थे जिसके कारण देश भर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे और हज़ारों सिख मारे गए।
अब भारत में खालिस्तानी आंदोलन की गति धीमी हो गई है लेकिन विदेशों में सिख समुदाय के कुछ लोग खालिस्तान बनाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं, जो पिछले कुछ सालों में और भी तेज़ हो गई हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि भारत सरकार उन सभी सिख बिज़नेस ग्रुप और उनके संगठनों पर कड़ी निगरानी रख रही है जो खालिस्तानियों को फंड कर रहे हैं। इसके अलावा सिख यात्रियों को भारत आने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, भले ही वे भारतीय मूल के हों। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, UK और USA में रहने वाले सिखों को भारत में प्रवेश करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जा सकता है। हालाँकि खालिस्तानी वास्तव में सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, लेकिन हर सिख उनके गलत कामों, खासकर विदेशों में भारत विरोधी गतिविधियों का शिकार है।
खालिस्तान आंदोलन ने एक अलगाववादी एजेंडे को बढ़ावा देकर सिख धर्म को विकृत कर दिया है जो सिख धर्म की मूल शिक्षाओं से अलग है। इस विकृति से सिख धर्म को वैश्विक स्तर पर गलत तरीके से समझे जाने का जोखिम है क्योंकि भारत विरोधी गतिविधियों इसके मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
- प्रो. सुदेश कुमार