पिछले कुछ दशकों से कश्मीर में भारत सरकार के बलपूर्वक शासन व्यवस्था बहाल करने के क्रम वहां स्थिति सामान्य से बहुत निचले स्तर तक पहुंच चुकी है इसका प्रत्यक्ष कारण है वहां मौजूद सदियों पुरानी दबी-कुचली इस्लामिक विचारधारा, अशिक्षा और गरीबी। जिसे विदेशी ताकतों ने पाकिस्तान के माध्यम से भारत के विरुद्ध अभी तक इस्तेमाल किया है। इसके साथ पाकिस्तानयों की आर्थिक दुर्बलता और उनके मदरसा कैम्प आतंकियों (जिन्हें वो नॉन-स्टेट-एक्टर्स बोलते हैं) का पाकिस्तानी आर्मी द्वारा खुले आम संरक्षण देना कश्मीर की बर्बादी का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
विदेशी कंपनियों के लिए भारत एक सबसे बड़ा बाजार रहा है जो की अपने नए अविष्कार और डिज़ाइन को चीन में बनवाकर भारत में बेचते है। यहां विचारणीय तथ्य यह है की किसी भी वस्तु को बनाने, बेचने और खरीदने वाले ज्यादातर एक ही स्तर के लोग हैं पर इसका सारा फायदा उन चंद विकसित देशों में बैठे कुछ लोगों को मिल रहा है जिन्होंने ब्रिटनवुड संस्थाओं के माध्यम से विश्व की आर्थिक व्यवस्था अपने फायदे के अनुरूप बना रखा है।
इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से सबसे ज्यादा लाभान्वित भारत की विशाल जनसंख्या इन चंद विकसित देशों के लिए सबसे बड़ी आर्थिक चेतावनी बन कर उभरी है। ये विकसित देश धुर्वीकरण के माध्यम से दो विशाल जनसंख्या वाले देशों पर अपनी पकड़ बनाये रखना चाहते है। जिसमें पाकिस्तान और कश्मीर जैसे समस्याओं का बने रहना उनके हित में है।
आखिर ये कौन सी अन्धकारमई विचारधारा है जो भारत को कैंसर की तरह परेशान कर रहा है। इसमें प्रथम स्थान धर्म को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना आता है जिससे हमारे बीच एक विखंडित राजनीति जन्म लेती है। ये चीज़े पूंजीवाद के लिए लाभदायक है और जहाँ हर स्तर पर सम्पन्न वर्ग अपने से निम्न वर्ग का शोषण करता है। यह आम लोगों में आर्थिक निराशा और डर बना कर उन्हें एक राजनीतिक की लड़ाई में उलझा देता है।
आम-आदमी के मन मे ख्याल आता होगा धर्म को राजनीतिक फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करते है? आज के वैष्विक राजनीति में सबसे ज्यादा दूरूपयोग इस्लाम का किया गया है। आप 55 इस्लामिक देशों को छोड़कर कहीं भी चले जाएं वहां के ज्यादातर लोग लगभग हर एक मुसलमान को आतंकवादी ही मानते हैं और उससे दूरी बनाये रखने में अपना हित समझते है। जिसका प्रमुख कारण जिहाद है जिसे आज पुनः व्याख्या की जरूरत है।
आज की स्थिति में कुरान में परिवर्तन की जरूरत है जो कि यह बताने में असमर्थ है कि जिहाद का सही अर्थ क्या है? किन परिस्थितियों में जिहाद को लागू किया जा सकता है और कौन इसका आदेश दे सकता है? आज के हालात में क्या यह सही है कि गैर-इस्लामी देश (दारुल हरब) को इस्लामी देश (दारुल इस्लाम) बनाने के लिए हमेशा आंशिक युद्ध के रूप में जिहाद (आतंकवाद) करते रहें? शरीयत के बहाने मुसलमान किसी भी देश मे जाकर उसकी संस्कृति को न माने और क़ानून का पूर्ण रूप से पालन ना करें?
जिहाद की राजनीति ने आम व्यक्ति की निगाह में इस्लाम और मुसलमान को संदेहास्पद श्रेणी में ले जाकर खड़ा कर दिया है। इसने मुसलमानों को दुनिया में कभी भी एक अच्छा नागरिक नहीं बनने दिया परंतु मुस्लिम धर्माचार्यों को इसकी कोई परवाह ही नही है। ये बस अपने घिसे-पिटे सदियों पुरानी राग अलापते रहते है। इनके लिए मदरसों में फ़िल्म, म्यूजिक और टेक्नोलॉजी की उपयोगिता भी हराम है जो कि इनके पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है।
सुदेश कुमार