इकनोमिक क्लास कॉन्फ्लिक्ट (विभिन्न आर्थिक श्रेणी के लोगो का टकराव)


आजकल हमें अक्सर सुनने को मिलता हैं कि ‪#‎रिक्शा‬ चालक का बेटा आइएएस अफसर बना. ‪#‎ऑटोरिक्शा‬ की ‪#‎बेटी‬ ने ‪#‎IIT‬ में टॉप किया। हमारे ‪#‎प्रधानमंत्री‬ की माँ दूसरे के घरों में काम किया करती थी, प्रधानमंत्री जी ने ‪#‎इकनोमिक‬ क्लास ‪#‎कॉन्फ्लिक्ट‬ को झेलते हुए देश सेवा के लिए अपनी ‪#‎वैवाहिक‬ जीवन को अर्पित कर दिया। डॉ ‪#‎अम्बेडकर‬ ने इसे ‪#‎धार्मिक‬ और ‪#‎आर्थिक‬ कारन मानते हुए ‪#‎बौद्ध‬ धर्म को अपनाया (जो अपग्रेडेड ‪#‎हिन्दू‬ धर्म का ही रूप हैं) और ‪#‎आरक्षण‬ का प्रावधान ‪#‎देश‬ में लाया, जो की बदली हुई परिस्थितियों में उतना कारगर नहीं सिद्ध पा रहा हैं. पर, नई ‪#‎टेक्नोलॉजी‬ ने इसको नकारते हुए, इकनोमिक ‪#‎इक्वलिटी‬ की ओर बेहतर कदम बढ़ाया हैं. ‪#‎डिजिटल‬ इंडिया मिशन इसे और कारगर बना सकता हैं.

‪#‎सुदेश‬ ‪#‎कुमार‬
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Economic Class Conflict –

Now days, we often hear that, son of rickshaw puller become an IAS officer, daughter of auto-rickshaw driver secured a top position in #IIT. The mother of our prime minister used to work as domestic service in neighbourhood and prime minister himself faced an economic class conflict and he donated himself to nation service by sacrificing his ‪#‎marital‬ life. Dr. ‪#‎Ambedkar‬ treated it as a ‪#‎religious‬ and ‪#‎economic‬ problem and converted himself in ‪#‎Buddhism‬, (which is a form of a modern ‪#‎Hindu‬ religion) and he also brought a ‪#‎reservation‬ system in India, that is not seem to be much successful as per change in times. Though, new technology has ignored it and taken a step ahead towards the economic ‪#‎equality‬ and ‪#‎digitalIndia‬ mission can make it better.

Sudesh Kumar
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