स्टार्टअप की दुनिया में मध्यम-वर्गीय परिवारों के बढ़ते कदम..


वसुधैव-कुटुम्बकम् यानी कि संसार ही अपना परिवार है को अपनी सभ्यता बताकर झूठे गर्व करने वाले लोगों की अपने देश में कोई कमी नही है। जो कि बचपन से ही पूंजीवाद के नेतृत्व वाली पिरामिडकल आर्थिक प्रणाली और सरकारी नीतियों की बुराई करते थकते नहीं हैं पर अपने होश संभालने तक ये खुद इनके गिरफ्त में पाये जाते हैं।

बचपन से ही ये लोगों के दिमाग में फाइनेंसियल इनसिक्योरिटी का डर इस कदर बैठा दिया जाता है कि ये हमेशा एक-दूसरे से मिलने पर सबसे पहले 'नौकरी, शादी और मकान' के बारे में ही पूछते है। इसे एक मध्यम-वर्गीय सोच के नाम से जाना जाता है। इनलोगों ने अपने जीवन को एक प्रकार से किराने दुकान की सूची बना दी थी।

आज के स्मार्टफोन की दुनिया में फ्री-इंटरनेट इन लोगों की सोच को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा साधन बन गया है। आजकल ये खुद अपने बच्चों को स्टार्टअप, फंडिंग और अर्थशास्त्र की व्यावहारिक शिक्षा की ओर अग्रसर कर रहे हैं।


Vasudhaiva Kutumbakam is a Sanskrit phrase, it means - entire world is our family, which has been an integral part of ancient Hindu civilization. But there is no shortage of people in our country who carry a fake pride of this. Those who have never been tired of criticizing capitalism-led pyramidical economic system and government policy since their childhood. Though, they find themselves being enslaved of same before reaching to adolescence.

The threat of financial insecurity has been placed in their mind right from childhood. So, intrestingly, while meeting to anyone, they usually ask about the 'job, marriage and house' at first. This is popularly known as a middle-class mentality.  These people had made their lives like a grocery list.

In today's smartphone world, free-internet has become the finest tool to influence the thinking of these people. These days, they themselves are encouraging their children towards startup, funding and practical education of economics.

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